2017 में हार, 21 में तकरार, 22 में कैसे होगा बेड़ा पार ?

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विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारियों के बीच उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाजी लगातार हावी हो रही है, पूर्व सीएम हरीश रावत और उनके विरोधियों में चल रहा शीतयुद्ध अब  गर्माहट में बदल गया है। हरीश रावत की सोशल मीडिया पर की गई पोस्ट ने कांग्रेस के झगड़े को और भी हवा दे दी है। हरीश रावत ने नाम लिए बिना नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश पर निशाना साधा है, साथ ही प्रीतम सिंह पर भी इशारों-इशारों में तंज कसा है। हरीश रावत ने लिखा है
”आज मैंने पुराने रिकॉर्ड तलाशे 2017 चुनाव के दौरान मैंने 94 सार्वजनिक सभाएं की जिनमें किच्छा में नामांकन के दिन की सार्वजनिक सभी भी शामिल है। हरिद्वार में तो मैं कोई सार्वजनिक सभा नहीं कर पाया शायद मेरे मन में विश्वास था कि हरिद्वार ग्रामीण में मेरे साथी प्रचार का जिम्मा संभाल लेंगे। ये भी एक विडंबना है कि जो लोग चुनाव के दौरान अपने क्षेत्र के बाहर प्रचार के लिए नहीं गए वो मुझ से 59 सीटों की हार का हिसाब चाहते हैं’’।
असल में हरीश रावत हार का हिसाब मांगे जाने से ही आहत हैं। 2017 का विधानसभा चुनाव हरीश रावत के चेहरे पर लड़ा गया था और कांग्रेस महज 11 सीट पर सिमट गई, हरीश रावत मुख्यमंत्री रहते हुए दो सीटों पर चुनाव हार गए। इसके बाद उन्होंने हार की जिम्मेदारी स्वीकार भी कर ली थी, लेकिन कांग्रेस में उनका विरोधी गुट लगातार हार का हिसाब मांगता रहा। नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश कई दफा खुले तौर पर हमलावर रही हैं और हरीश रावत को कठघरे में खड़ा कर चुकी हैं। अब चुनावी साल में एक बार फिर हरीश रावत के समर्थक उन्हें सीएम का चेहरा घोषित करने की मांग कर रहे हैं तो कांग्रेस का एक गुट इसका विरोध कर रहा है और नेता प्रतिपक्ष बार-बार सामुहिक नेतृत्व की बात दोहरा रही हैं। इसी कमशकश के बीच हरीश रावत से एक बार फिर 59 सीटों की हार का हिसाब भी मांगा गया, इसीलिए हरीश रावत का दर्द छलका और उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए अपनी ही पार्टी के नेताओं पर तीखे तीर चलाए, हरीश रावत ने लिखा है....
’’हारें पहले भी हुईं, हारें बाद में भी हुईं, लेकिन मैंने हारों का हिसाब नहीं मांगा है, क्योंकि मैंने उन हारों को भी सामुहिक समझा, और पहले की जो हारें हैं मैंने किसी से नहीं पूछा कि क्या कारण है जो #चुनावी जीत के विशेषज्ञ हैं उनके आस पास की सीटें हम 2007 से लगातार क्यों हारते आ रहे हैं, ये भी एक खोज का विषय है’’।
हरीश रावत ने अपनी इस पोस्ट के जरिए सीधा हमला इंदिरा हृदयेश पर किया है। इंदिरा हृदयेश नैनीताल जिले की हल्द्वानी सीट से चुनाव लड़ती हैं और 2007 के चुनाव में नैनीताल जिले की 6 में से कांग्रेस सिर्फ एक सीट ही जीत पाई थी, खुद इंदिरा हृदयेश को भी हार का सामना करना पड़ा था। 2012 के चुनाव में नैनीताल जिले की 6 सीट में से कांग्रेस के खाते में तीन सीट आई थी, जबकि 3 पर हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में नैनीताल जिले में सिर्फ हल्द्वानी सीट ही कांग्रेस को मिली, यहां इंदिरा हृदयेश ने कामयाबी हासिल की और वो नेता प्रतिपक्ष भी बन गईं। तब से लगातार इंदिरा हृदयेश की ओर से हरीश रावत पर हमले होते रहे हैं, इसीलिए अब 2022 के चुनाव से पहले हिसाब मांगने वालों को जवाब दे रहे हैं, लेकिन इतना तय है कि अगर कांग्रेस के अंदर हिसाब किताब की सियासत चलती रही तो चुनाव में कांग्रेस को जरूर इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। हालांकि पार्टी के कई नेता खासतौर पर हरीश रावत के समर्थक खुलकर सामने आ गए हैं। कई नेताओं ने हरीश रावत को सीएम का चेहरा बनाने की सार्वजनिक मंचों से मांग की है। आलाकमान पर दबाव बनाने के लिए तरह-तरह के पैंतरे अपनाए जा रहे हैं। लिहाजा पार्टी में अंदरुनी तकरार भी बढ़ रही है, इसीलिए हरीश रावत की एक पोस्ट के बाद देहरादून से लेकर दिल्ली तक हलचल तेज हो गई है। गुटबाजी का बढ़ता दायरा सत्ता पाने के अरमानों पर पानी ना फेर दे इसके लिए अब पीसीसी चीफ प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश को दिल्ली तलब किया गया है। दोनों नेताओं की आलाकमान के सामने रविवार यानि 21 फरवरी को पेशी होगी और पूरे सियासी माहौल पर चर्चा होगी। बैठक में प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव भी मौजूद रहेंगे। अब देखना होगा कि दिल्ली में होने वाली बैठक का क्या नतीजा निकलता है और कांग्रेस की कलह कैसे थामने का कौन सा फॉर्मूला इजाद किया जाता है।

गिरीश खड़ायत की कलम से,

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