पलायन की पीर कितनी बढ़ गई है पौड़ी के जसपुर गांव से पूछिए। यहां पलयान का जख्म इतना गहरा है कि घरों के किवाड़ों पर तालों का दर्द है, तो छतों से खंडहर होने का मवाद रिस रहा है। हालांकि इन सबके बीच जिले के जामलाखाल गांव के दो बेटों ने पलायन के घटाटोप अंधेरे में रिवर्स पलायन का चिराग जलाया है।
पुरखों के आबाद गांवों को उजाड़ होता देख दो भाईयों अजय पंवार और हरीश पंवार का कलेजा चाक-चाक हो उठा...गांव की दुर्दशा देख दोनों भाईयों ने विदेश की शानदार नौकरियों को ठोकर मार दी। घर लौटे और पहले जामलाखाल के खेतों को आबाद किया और उसके बाद पूरी तरह से खाली हो चुके जसपुर गांव को सजाने की शुरूआत कर दी। अब दोनों वैज्ञानिक तरीके से गांव में नकदी फसल उगा रहे हैं।
सुनिए इनकी जुबानी.....
कहीं टमाटर है, तो कहीं शिमला मिर्च की पौध खड़ी हैं। मटर की कोंपले पौध बनकर मुस्करा रही हैं और उत्तराखंड के इन लालों को हौंसला दे रही हैं। आज ये गांव के कुछ लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं और पलायन के घाव पर मरहम भी लगा रहे हैं। बस इन्हें जरूरत है सरकार की हौसला आफजाई की।
अजय पंवार और हरीश पंवार विदेशी नौकरियों को तिलांजलि देकर गांव सजाने लौटे हैं। ऐसे में जरूरत है.. इनके रैबार को समझने की और इनकी पीठ थपथपाने की । ताकि इनकी मेहनत रंग लाए और इनका हौंसला बना रहे। किसी भी मोड़ पर इन्हें नौकरी छोड़ने का मलाल न रहे। जब भी जरूरत पड़े सरकारी हाथ सहारा बनने को तैयार रहें।